विश्वका प्रथम सनातन धर्म हिन्दू
सनातन धर्म: (हिन्दू
धर्म, वैदिक धर्म) अपने मूल रूप हिन्दू धर्म के
वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम
मिलता है। 'सनातन' का
अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय
उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के बाद भी
विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी इसी धर्म में आस्था रखती है। सिन्धु नदी
के पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते, जो
'स' का
उच्चारण 'ह' करते
थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को
हिन्दू धर्म कहने लगे। भारत के अपने साहित्य में हिन्दू शब्द कोई १००० वर्ष पूर्व
ही मिलता है, उसके पहले नहीं। हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में
सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक
सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था।
सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म भी
कहा जाता है, का १९६०८५३११० साल का इतिहास हैं। भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते
हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख
हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का
आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा
बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही
आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।[4]
प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव:कोटी वैष्णव,शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे।गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव:कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की औरसौर सूर्य की पूजा आराधना
किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय
ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने
देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें
वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह
शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी
भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की
उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे।
सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति,स्मृतियाँ,उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है।
कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन
हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को
सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की
रक्षा की।
जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के
मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द
से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
'सनातन धर्म', हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम है।
हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले
सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से
ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं
है और न ही कोई "पोप"। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी
को बराबर श्रद्धा दी जाती है।
हिन्दू-धर्म हिन्दू-कौन?-- गोषु
भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति
स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में
जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स
हिन्दु ' अर्थात जो हीन (हीनता या नीचता) को दूषित समझता है (उसका त्याग
करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य
भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी
के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी
पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू (पवित्र भूमि) है, (और उसका धर्म
हिन्दुत्व है) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन
भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा
के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के
आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित रीति से
वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है।
हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ
मुख्य बिन्दु:
1. ईश्वर एक नाम अनेक.
2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है.
3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है.
6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं.
7. परोपकार पुण्य है,
दूसरों को कष्ट देना पाप है.
8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है.
9. स्त्री आदरणीय है.
10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है.
11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
14. आत्मा अजर-अमर है.
15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
(ॐ भूर्भुव स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो
नः प्रचोदयात् ॥
हिन्दी में भावार्थ - उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप,
श्रेष्ठ, तेजस्वी,
पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा
हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।)
16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं.
17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना
गया है.
18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है.
अरब की प्राचीन वैदिक
संस्कृति :
लगभग 1400 साल पहले अरब में इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ,
इससे पहले अरब के निवासी अपने पिछले 4000 साल के इतिहास को भूल चुके थे, और इस्लाम में इस काल को जिहालिया कहा गया है जिसका अर्थ है अन्धकार का युग,
लगभग 1400 साल पहले अरब में इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ,
इससे पहले अरब के निवासी अपने पिछले 4000 साल के इतिहास को भूल चुके थे, और इस्लाम में इस काल को जिहालिया कहा गया है जिसका अर्थ है अन्धकार का युग,
परन्तु ये जिहालिया का युग मुहम्मद के अनुयाइयो द्वारा फैलाया झूठ है, इस्लाम से पहले वहां पर वैदिक संस्कृति थी, हमारे विभाग ने इस पर एक नहीं हजारो प्रमाण इकट्ठे कर लिए है,
और ये मुर्ख ये नहीं जानते की जब मुहम्मद के कहने पर वहां के सभी पुस्तकालय, देवालय, विद्यालय जला दिए तो इन्हें कैसे पता चला की वहां पर इस्लाम से पहले जाहिलिया का युग था,
असल में मुहम्मद जो की भविष्यपुराण के अनुसार राक्षस था, ने राजा भोज के स्वपन में आकर कहा था की आपका सनातन धर्म सर्वोत्तम है पर मैं उसे पुरे संसार से समेट कर उसे पैशाचिक दारुण धर्म में परिवर्तित कर दूंगा,
और वहां के लोग लिंग्विछेदी, दढ़ियल बिना मुछ के, ऊँची आवाज में चिल्लाने वाले(अजान), व्यभाचारी, कामुक और लुटेरे होंगे,
इसलिए ये जहाँ भी जाते है अराजकता फैला देते है, खुद मुस्लिम देश भी दुखी है,
इनके जिहालिया के युग का भांडा शायर ओ ओकुल में फूटता है, जिसमे लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा जी ने अरब में वैदिक संस्कृति को प्रमाणित किया है,
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे
जिकरतुन।1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी
अरवे अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल
मिनल हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज
आलमीन फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद
हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल
यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन
योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन
का-अ-खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।”
अर्थात- (1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के
सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में
ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ। (3) और परमात्मा समस्त संसार के
मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो। (4) वह ज्ञान के भण्डार साम और
यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का
मार्ग बताते है। (5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त
नहीं होता।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ शायर-ए-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद
के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल
हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है । ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता नयी दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण
मन्दिर (बिड़ला मन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर
काली स्याही से लिखी हुई है,
जो इस प्रकार है –
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक ।
कलुवन अमातातुल हवा व
तजक्करू ।1।
न तज खेरोहा उड़न एललवदए
लिलवरा ।
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू
।2।
व अहालोलहा अजहू अरानीमन
महादेव ओ ।
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व
सयत्तरू ।3।
व सहबी वे याम फीम कामिल
हिन्दे यौमन ।
व यकुलून न लातहजन फइन्नक
तवज्जरू ।4।
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन
कुल्लहूम ।
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल
हिन्दू ।5।
अर्थात् – (1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2) अदि अन्त में उसको पश्चाताप हो और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ? (3) एक बार
भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से
उच्च पद को पा सकता है। (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत
(हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता
है। (5) वहाँ की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति
होती है, और आदर्श गुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता
है
अरब में लगभग 400-600 ईसा पूर्व चक्रवर्ती महाराज चन्द्रगुप्त ने सनातन धर्म की स्थापना की, पर शको के आक्रमण के बाद यहाँ से भारत का नियंत्रण लगभग कट चूका था,
अरब में तब घर घर में सनातनी देवी देवताओं की पूजा होती थी, शिक्षा के लिए विधिवत गुरुकुल थे, बड़े बड़े संग्रहालय और पुस्तकालय थे, वैदिक संस्कृति से ओतप्रोत अरब में चहुँ और सनातन धर्म का एकछत्र साम्राज्य था,
अरब में तब घर घर में सनातनी देवी देवताओं की पूजा होती थी, शिक्षा के लिए विधिवत गुरुकुल थे, बड़े बड़े संग्रहालय और पुस्तकालय थे, वैदिक संस्कृति से ओतप्रोत अरब में चहुँ और सनातन धर्म का एकछत्र साम्राज्य था,
Vikramaditya – The Great
Hindu Emperor
इसी काम में शक्वाहन के
नेतृत्व में पुन: अरब में सनातन संस्कृति की स्थापना हुई,
महाभारत काल में कम्बोज के कुम्ब्ज राजा का वर्णन आता है, ठीक इसी प्रकार एक मितन्नी वंश का भी वर्णन आता है जो बाद में अरब की और पलायन कर गया था,
महाभारत काल में कम्बोज के कुम्ब्ज राजा का वर्णन आता है, ठीक इसी प्रकार एक मितन्नी वंश का भी वर्णन आता है जो बाद में अरब की और पलायन कर गया था,
अरब में लगभग 500 वर्ष तक मितन्नी वंश के राजाओं का शासन रहा जो की अहुर(असुर) वंश के
थे,
इनके नाम है:
तुष्यरथ(दशरथ)
असुर निराही II
असुर दान I
असुर नसिरपाल I
असुर बानिपाल I
इनके नाम है:
तुष्यरथ(दशरथ)
असुर निराही II
असुर दान I
असुर नसिरपाल I
असुर बानिपाल I
632 ईo के बाद यहाँ पर पैगम्बर
मुहम्मद के रूप में इस्लाम की स्थापना हुई, इस्लाम की स्थापना के बाद
अरब में व्यापक स्तर पर हिन्दुओ का नरसंहार हुआ,
काबा में स्थित सभी मूर्तियों को मुहम्मद द्वारा तोड़ दिया गया, परन्तु इसके उपरान्त भी मुहम्मद ने काबा में हजरे-असवद नाम के एक काले पत्थर को वहां पर रहने दिया और आज हर मुसलमान हज के समय उसके दर्शन अवश्य करता है,
काबा में स्थित सभी मूर्तियों को मुहम्मद द्वारा तोड़ दिया गया, परन्तु इसके उपरान्त भी मुहम्मद ने काबा में हजरे-असवद नाम के एक काले पत्थर को वहां पर रहने दिया और आज हर मुसलमान हज के समय उसके दर्शन अवश्य करता है,
असल में हजरे अस्वाद का
हजरे हजर शब्द से बना है जो की हर का अपभ्रंश है, हर का अर्थ संस्कृत में शिव
होता है और अस्वाद अश्वेत का ही अपभ्रंश है, चूँकि मुहम्मद के समय ये
पत्थर सफ़ेद रंग का था जो की बाद में हज के समय आने वाले पापियों, दुराचारियो और व्यभाचारियो के द्वारा छुते रहने के कारण काला पड़ गया,
Black stone in kaaba
मक्का में काबा में स्थित
भगवान् शिव भी सोचते होंगे की प्रतिवर्ष हजारो पापी अपने पापो की क्षमा याचना के
लिए मक्का में इस आशा से आते है की उस शिवलिंग को के दर्शन मात्र से उनके पाप मिट
जायेंगे,
यहाँ पर मुस्लीम बिना सिले
२ कपडे लेते है एक पहन कर और दूसरा कंधे पर डाल कर काबा की घडी की उलटी दिशा में 7 परिक्रमा करते है,
चूँकि मुहम्मद ने
भविष्यपुराण के अनुसार पैशाचिक धर्म की स्थापना की थी, इसलिए नकारात्मक ऊर्जा को मुसलमानों में निरंतर भरे रखने के लिए वहां
पर उलटी परिक्रमा का रिवाज रखा गया,
अब इस्लाम पर थोडा और
जानकारी, इस्लामिक मत के अनुसार क़यामत के बाद हजरत मूसा ने
इस धरती को पुन: बसाया था, जिसकी कहानी कुछ कुछ मतस्य पुराण से मिलती है,
मतस्य पुराण में प्रलय की कथा : मतस्य पुराण 11/38
मतस्य पुराण में प्रलय की कथा : मतस्य पुराण 11/38
ठीक इसी प्रकार इस्लाम का
अर्धचन्द्र सनातन संस्कृति से लिया गया है, भगवान् शंकर की पूजा करने
वाले अरब वासियों ने भगवान् शिव के मस्तक पर स्थित अर्धचन्द्र को इस्लाम में स्थान
दिया, चुकी देखने वाले बात ये है की इस्लामिक शहादा के
झंडे में और मुहम्मद के मक्का फतह के समय वाले झंडे में ऐसा कुछ नहीं है, ये केवल अन्य गैर अरबी देशो में है जो बाद में इस्लामिक देश बन गये,
ये है वो फोटो :
ये है वो फोटो :
ये है पूरी उड़ीसा के भगवान
जगन्नाथ का मंदिर,
पूरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान् कृष्ण, बड़े भैया बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजते है,
हर साल उनकी बड़ी झांकी निकलती है जिसमे दूर दूर से देश विदेश के श्रद्दालु आते है और भगवान् का रथ खींचते है,
पर आज तक मंदिर के शिखर पर लगे हुए ध्वज, धर्म पताका की ओर किसी का ध्यान संभवतया ही गया होगा,
मंदिर के शिखर पर लगी धर्म पताका में हिन्दू ध्वजों की तरह ही तिकोने आकार में भगवा वस्त्र और बीच में चाँद व् तारा चिन्हित है,
आमतौर पर ये चिन्ह इस्लामिक झंडो में लगता है पर इस पर भी एक गूढ़ रहस्य है जिसके विषय में मित्र विक्रमादित्य जी ने एक काफी विस्तृत लेख लिखा था और मंगोलिया सभ्यता के साथ चंगेजी खान के साथ सनातनी सभ्यता के कुछ प्रमाण भी दिखाए थे,
ठीक उसी प्रकार इन चिन्ह का मंगोलिया से सम्बन्ध है और मंगोलिया के ही चाँद तारा के इस चिंह को अधिकतर इस्लामिक देश(गैर अरब) प्रयोग करते है,
ये भी ध्यान देने वाली बात है की केवल अरब में किसी झंडे में चाँद तारा एक साथ नहीं है, अर्थात चाँद तारा इस्लामिक चिन्ह नहीं है, इस चाँद तारे का उपयोग सनातनी मंदिरो के अतिरिक्त केवल और केवल मंगोल की प्राचीन सभ्यता में हुआ है, जिसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण आपके समक्ष है
पूरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान् कृष्ण, बड़े भैया बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजते है,
हर साल उनकी बड़ी झांकी निकलती है जिसमे दूर दूर से देश विदेश के श्रद्दालु आते है और भगवान् का रथ खींचते है,
पर आज तक मंदिर के शिखर पर लगे हुए ध्वज, धर्म पताका की ओर किसी का ध्यान संभवतया ही गया होगा,
मंदिर के शिखर पर लगी धर्म पताका में हिन्दू ध्वजों की तरह ही तिकोने आकार में भगवा वस्त्र और बीच में चाँद व् तारा चिन्हित है,
आमतौर पर ये चिन्ह इस्लामिक झंडो में लगता है पर इस पर भी एक गूढ़ रहस्य है जिसके विषय में मित्र विक्रमादित्य जी ने एक काफी विस्तृत लेख लिखा था और मंगोलिया सभ्यता के साथ चंगेजी खान के साथ सनातनी सभ्यता के कुछ प्रमाण भी दिखाए थे,
ठीक उसी प्रकार इन चिन्ह का मंगोलिया से सम्बन्ध है और मंगोलिया के ही चाँद तारा के इस चिंह को अधिकतर इस्लामिक देश(गैर अरब) प्रयोग करते है,
ये भी ध्यान देने वाली बात है की केवल अरब में किसी झंडे में चाँद तारा एक साथ नहीं है, अर्थात चाँद तारा इस्लामिक चिन्ह नहीं है, इस चाँद तारे का उपयोग सनातनी मंदिरो के अतिरिक्त केवल और केवल मंगोल की प्राचीन सभ्यता में हुआ है, जिसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण आपके समक्ष है
Moon Star symbol on the
flag of Jagannath Temple, Puri
एकेश्वरवाद का सिद्धांत भी
सनातन धर्म से लिया गया है जहाँ पर देवी देवता और अवतार बहुत है पर इश्वर एक ही है, ॐ शिव, क्यूंकि शिव ही अजन्मा है,
और जिस जमजम के कुएं की ये बात करते है एक शिवलिंग उसमे भी है जिसकी पूजा खजूर के पत्तो से होती है,
इस प्रकार मक्का में एक नहीं, दो शिवलिंग है,
और जिस जमजम के कुएं की ये बात करते है एक शिवलिंग उसमे भी है जिसकी पूजा खजूर के पत्तो से होती है,
इस प्रकार मक्का में एक नहीं, दो शिवलिंग है,
अब बात आती है मक्का में एक
और प्रमाणिक स्त्रोत की, सभी जानते है की भगवान् वामन ने बलि के 100 यज्ञो द्वारा इंद्र पद प्राप्त करने के प्रयास को विफल करते हुए उससे
तीन पग भूमि ली और उसमे चराचर जगत को २ पग में नाप कर तीसरे पद में राजा बलि को भी
अपने अधीन कर लिया, भगवान् वामन का ये तीसरा पग और कही नहीं, मक्का में ही पड़ा था, इसका प्रमाण है मक्का में
काबा के ठीक बाहर रखा एक स्तम्भ,
जो की इस्लामिक मान्यता के
अनुसार अब्राहम का है,
ये देखे :
ये देखे :
feet of abraham outside
kaaba
और यदि हम अब्राहम शब्द को
देखे तो यह अ+ब्रह्म बनता है,
जो परमपिता ब्रह्मा जी की
और इंगित करता है, इसका एक प्रमाण शास्त्रों में यहाँ मिलता है :
एकं पदं ग्यायान्तु मक्कायान्तु द्वितीयं
तृतीयं स्थापितं दिव्यम मुक्ताए शुक्लस्य सन्निधो – हरिहर क्षेत्रमहात्म्य 7:6
तृतीयं स्थापितं दिव्यम मुक्ताए शुक्लस्य सन्निधो – हरिहर क्षेत्रमहात्म्य 7:6
अन्य प्रमाण :
जब मुहम्मद ने काबा और मक्का के पास स्थिति सभी सनातनी प्रमाणों को नष्ट कर दिया तब उसके बाद उसका पश्चाताप करने के लिए मुहम्मद ने विधिवत सनातन विधि से काबा में मंदिर की स्थापना की, इसका एक प्रमाण है काबा का अष्टकोणीय वास्तु, इसमें एक चतुर्भुज के ऊपर दूसरा चतुर्भुज टेढ़ा करके मंदिर स्थापना होती है और प्रत्येक सनातन मंदिर में यही विधान है,
ये देखे:
जब मुहम्मद ने काबा और मक्का के पास स्थिति सभी सनातनी प्रमाणों को नष्ट कर दिया तब उसके बाद उसका पश्चाताप करने के लिए मुहम्मद ने विधिवत सनातन विधि से काबा में मंदिर की स्थापना की, इसका एक प्रमाण है काबा का अष्टकोणीय वास्तु, इसमें एक चतुर्भुज के ऊपर दूसरा चतुर्भुज टेढ़ा करके मंदिर स्थापना होती है और प्रत्येक सनातन मंदिर में यही विधान है,
ये देखे:
काबा का अष्टकोणीय वास्तु :
ठीक इसी प्रकार जमजम गंगगंग
का ही अपभ्रंश है, और अरब में किसी मुस्लिम के मरने पर उसके मुह में
जमजम का पानी डाला जाता है ठीक उसी प्रकार जैसे हिन्दुओ के मुह में गंगाजल डाला
जाता है,
कहते है की
कहते है की
मुहम्मद ने कालिदास द्वारा
भस्म होने के बाद भविष्य पुराण के अनुसार राजा भोज के स्वप्न में आकर राक्षसी
पैशाचिक धर्म की नींव रख कर सनातन धर्म का नाश करने की बात कही थी, इसी के फलस्वरूप कुरान में मुसलमानों को जिहाद का आदेश दिया, और हदीस बुखारी किताब २ के अनुसार इसका सबसे बड़ा शत्रु केवल भारत था, जिसे अरबी में हिन्द कहते है, भारत को ख़ास टारगेट करके ही
मुहम्मद ने मुसलमानो को गजवा हिन्द के निर्देश दिए,
इसके बाद इस्लाम धीरे धीरे
अन्य देशो में फैला जैसे की मिस्र,
जैसा की नाम से ही पता चलता है मिस्र एक सनातनी देश था जो की मिश्रा हिन्दुओ के नाम पर बना है, ठीक इसी प्रकार सीरिया का नाम सूर्य देश था जो कालांतर में सीरिया हो गया,
जैसा की नाम से ही पता चलता है मिस्र एक सनातनी देश था जो की मिश्रा हिन्दुओ के नाम पर बना है, ठीक इसी प्रकार सीरिया का नाम सूर्य देश था जो कालांतर में सीरिया हो गया,
मिस्र में लगभग 3000 सालो तक सनातन धर्म की पताका फहराई गयी थी,
इसका प्रमाण है वहां पर लगभग 11 पीढ़ी तक राम नाम के शासको द्वारा शासन करना,
जिनके नाम है:
परमेश रामशेस
रामशेस I
रामशेस II
रामशेस III
रामशेस IV
रामशेस V महान
रामशेस VI
रामशेस VII
रामशेस VIII
रामशेस IX
रामशेस X
इसका प्रमाण है वहां पर लगभग 11 पीढ़ी तक राम नाम के शासको द्वारा शासन करना,
जिनके नाम है:
परमेश रामशेस
रामशेस I
रामशेस II
रामशेस III
रामशेस IV
रामशेस V महान
रामशेस VI
रामशेस VII
रामशेस VIII
रामशेस IX
रामशेस X
इसके अतिरिक्त महान राजा
फ़राओ अपने उदर(पेट) व् मस्तक पर एक तिलक लगाते थेजो की हुबहू गोस्वामी तुलसीदास
जैसा था.
अत: ये कहना की इस्लाम एक धर्म है गलत है,
संकलनकर्ता – Saffron Hindurashtra
और दिए प्रमाणों के बल पर मैं सभी मुस्लिम समाज को चुनौती देता हु की मेरे दिए प्रमाणों को नकारे या सत्य स्वीकार करे,
ॐ
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय,